मैं ढूंढ रहा हूँ उन साथियों को जिनके साथ में इस रंग अनुभव को साझा कर सकूं ! – मंजुल भारद्वाज
26 नवम्बर,2019 को
सांस्कृतिक चेतना को जागते हुए ‘सांस्कृतिक क्रांति’ का एक अविस्मरणीय अनुभव हुआ.
रंग उर्जा का वो प्रवाह,वेग,तेज,सैलाब या बवंडर जो आप कहें वो मेरे मस्तिष्क में
घनघना रहा है,उमड़ घुमड़ रहा है. ऐसा ही तो चाहा था 28 वर्ष पहले.. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस
नाट्य सिद्धांत के सूत्रपात का उद्देश्य यही है ..जिसकी पूर्ति का यह प्रयोग रहा.
बिना राजनैतिक पार्टी या चुनाव में सीधे हस्तक्षेप किया ..अपने रंगकर्म से
राजनैतिक परिदृश्य में दखल दे सत्ता को बदल देने का अनोखा अनुभव बड़ा बैचेन कर रहा
है. जहाँ कलाकार सत्ता का भांड या पेट भरने के रंगकर्म का उपयोग कर रहे हों ..वहां
रंगकर्मी की औकात की वो सत्ता की धारा बदल दे ..अविश्वसनीय है ..पर सत्य है ..
मेरे इस फितूर से
किसी को लेना देना नहीं है. दर्शकों ने, आयोजकों ने ..मीडिया ने नाटक की , लेखक-
निर्देशक की , कलाकारों की बहुत तारीफ़ की. कलाकार भी अपने कर्म की दाद के बाद अपने
जीवन में मस्त हैं.
मैं बैचैन हूँ की
यह अनुभव किसको बताऊँ, किस रंगकर्मी में यह चेतना की मशाल जलाऊँ.. समाज का कौन सा
वर्ग है जिसको मेरे अनुभव से कोई लेना देना है वो भी वर्चस्वादियों के शासन काल
में.
मैं ढूंढ रहा हूँ
उन साथियों को जिनके साथ में इस रंग अनुभव को साझा कर सकूं !
....
एक सृजनकार का
उद्देश्य होता है, उसकी ‘रचना’ में निहित ‘उर्जा’ स्पंदित होकर, पूरे समाज में रचना के ध्येय को स्पंदित करे. और जब ये
उद्देश्य साकार होता है तब सृजनकार का व्यक्ति आह्लादित होकर प्रकृति की भांति सम
हो जाता है. यही सम उसे सृजनकार बनाता है.
मैंने ऐसा ही
महसूस किया 26 नवम्बर, 2019 को नाटक ‘राजगति’ के मंचन में. महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद
सत्ता की कवायद अपने षड्यंत्र के चरम पर थी. जबकि नाटक ‘राजगति’ राजनैतिक परिदृश्य को बदलने के लिए प्रतिबद्ध
है. चुनाव के पहले जनता में संविधान सम्मत देश के मालिक होने का भाव नाटक राजगति
ने जगाया था. वर्चस्व वादियों को उनका ठौर दिखा दिया था जनता ने.
सत्ता में वचन
निभाना अनिवार्य होता है, ऐसा बोध सत्ता के लिए ही सही, पर राजनैतिक पार्टियों को भी हुआ. एक पार्टी विकारी पार्टी
को छोड़ विचार की ओर आगे बढ़ी ... अलग अलग विचार का झंडा फहराने वाली सत्ता सुख भोगी
पार्टियां भी खरखराते हुए होश में आई और सत्ता समीकरण का घटना क्रम हुबहू ऐसा चल
रहा था जैसा नाटक ‘राजगति’ के मंच पर...
एक-एक पल, संवाद, कलाकारों का सृजन
स्पंदन और सृजनकार का राजनैतिक चिंतन दृष्टि आलेख रियल टाइम में रियल घटनाओं को
स्पंदित कर रहा था. जिसका साक्षी था औरंगाबाद का गोविंदभाई श्राफ कॉलेज का
ऑडिटोरियम. गोविंदभाई श्राफ कॉलेज के ऑडिटोरियम में दर्शकों ने राजगति की रंगसाधना
से सत्ता, व्यवस्था, राजनैतिक चरित्र
और राजनीति को अलग अलग राजनैतिक विचारधाराओं के माध्यम से विश्लेषित किया. विकार
और विचार के संघर्ष को जीते हुए विचार धारा के प्रहार को भी सहन किया. थिएटर ऑफ़
रेलेवंस रंग सिद्धांत की इस अनूठी रंग अनुभूति को सभी दर्शकों ने वैचारिक असहमति
के बावजूद स्वीकारा और वैचारिक असहमति के बिंदुओं पर निरंतर संवाद प्रक्रिया का
संकल्प लिया.
आज लोकतंत्र की
सबसे कमज़ोर कड़ी यानी संख्याबल का फायदा उठाकर
वर्चस्ववादी सत्ता के शीर्ष पर विराजमान हैं, जिनके आतंक के
सामने पत्रकार पत्तलकार हो चारण हो गए, जनता विकल्पहीन
भेड़ और कलाकार जयकारा लगाने वाली भीड़ बन गए. ऐसे समय में सत्ता के अंधे बीहड़ में
दृष्टिहीन धृतराष्ट्र को ‘राजनैतिक विवेक’ का दीया दिखाने
का कर्म आत्मघाती है. पर इस चुनौती का थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के प्रतिबद्ध कलाकारों ने
बखूबी सामना किया और राजगति नाटक के मंचन से जनता के राजनैतिक विवेक को जगाया.
...
#मंजुलभारद्वाज
#रंगकर्म
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