Sunday, September 27, 2020

संविधान दिवस, 26 नवम्बर को अपनी रंग साधना नाटक ‘राजगति’ से ‘संविधान’ को सहेजते हुए ! –मंजुल भारद्वाज

 



संविधान दिवस, 26 नवम्बर को अपनी रंग साधना नाटक राजगतिसे संविधानको सहेजते हुए ! –मंजुल भारद्वाज

एक सृजनकार का उद्देश्य होता है, उसकी रचनामें निहित उर्जास्पंदित होकर, पूरे समाज में रचना के ध्येय को स्पंदित करे. और जब ये उद्देश्य साकार होता है तब सृजनकार का व्यक्ति आह्लादित होकर प्रकृति की भांति सम हो जाता है. यही सम उसे सृजनकार बनाता है.

मैंने ऐसा ही महसूस किया 26 नवम्बर, 2019 को नाटक राजगतिके मंचन में. महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सत्ता की कवायद अपने षड्यंत्र के चरम पर थी. जबकि नाटक राजगतिराजनैतिक परिदृश्य को बदलने के लिए प्रतिबद्ध है. चुनाव के पहले जनता में संविधान सम्मत देश के मालिक होने का भाव नाटक राजगति ने जगाया था. वर्चस्व वादियों को उनका ठौर दिखा दिया था जनता ने.

सत्ता में वचन निभाना अनिवार्य होता है, ऐसा बोध सत्ता के लिए ही सही, पर राजनैतिक पार्टियों को भी हुआ. एक पार्टी विकारी पार्टी को छोड़ विचार की ओर आगे बढ़ी ... अलग अलग विचार का झंडा फहराने वाली सत्ता सुख भोगी पार्टियां भी खरखराते हुए होश में आई और सत्ता समीकरण का घटना क्रम हुबहू ऐसा चल रहा था जैसा नाटक राजगतिके मंच पर... एक-एक पल, संवाद, कलाकारों का सृजन स्पंदन और सृजनकार का राजनैतिक चिंतन दृष्टि आलेख रियल टाइम में रियल घटनाओं को स्पंदित कर रहा था. जिसका साक्षी था औरंगाबाद का गोविंदभाई श्राफ कॉलेज का ऑडिटोरियम. गोविंदभाई श्राफ कॉलेज के ऑडिटोरियम में दर्शकों ने राजगति की रंगसाधना से सत्ता, व्यवस्था, राजनैतिक चरित्र और राजनीति को अलग अलग राजनैतिक विचारधाराओं के माध्यम से विश्लेषित किया. विकार और विचार के संघर्ष को जीते हुए विचार धारा के प्रहार को भी सहन किया. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस रंग सिद्धांत की इस अनूठी रंग अनुभूति को सभी दर्शकों ने वैचारिक असहमति के बावजूद स्वीकारा और वैचारिक असहमति के बिंदुओं पर निरंतर संवाद प्रक्रिया का संकल्प लिया.

आज लोकतंत्र की सबसे कमज़ोर कड़ी यानी  संख्याबल का फायदा उठाकर वर्चस्ववादी सत्ता के शीर्ष पर विराजमान हैं, जिनके आतंक के सामने पत्रकार पत्तलकार हो चारण हो गए, जनता विकल्पहीन भेड़ और कलाकार जयकारा लगाने वाली भीड़ बन गए. ऐसे समय में सत्ता के अंधे बीहड़ में दृष्टिहीन धृतराष्ट्र को राजनैतिक विवेकका दीया दिखाने का कर्म आत्मघाती है. पर इस चुनौती का थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के प्रतिबद्ध कलाकारों ने बखूबी सामना किया और राजगति नाटक के मंचन से जनता के राजनैतिक विवेक को जगाया.

विश्व के विभिन्न देशों में, देश के लगभग हर भू भाग पर लगातार 28 वर्षों की रंगसाधना में 26 नवम्बर की राजगति नाटक की प्रस्तुति एक अद्भुत, अविस्मरणीय रंग अनुभूति रही, जिसने सीधे सीधे राजनैतिक परिदृश्य को बदल सत्ता के निर्माण को प्रभावित किया!

राजनैतिक परिदृश्य बदलने और विचार, विविधता, विज्ञान, विवेक और संविधान सम्मतराजनैतिक कौम को गढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है नाटक राजगति’!

लेखन-निर्देशन : रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज

कलाकार:अश्विनी नांदेडकर, बबली रावत ,योगिनी चौक, सायली पावसकर, कोमल खामकर, तुषार म्हस्के ,स्वाती वाघ, प्रियंका कांबळे,सुरेखा, बेटसी अँड्र्यूस आणि सचिन गाडेकर.

प्रकाश संयोजन : संकेत आवले

आयोजन: दो दिवसीय 26-27 नवम्बर, 2019 'थिएटर ऑफ़ रेलेवंस -संविधान संवर्धन नाट्य जागर ' महोत्सव

आयोजक :प्रगतिशील लेखक संघ व इप्टा औरंगाबाद,महाराष्ट्र

निमित्त : आयटक शताब्दी वर्ष व साहित्यरत्न अण्णा भाऊ साठे जन्मशताब्दी वर्ष

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