Saturday, December 10, 2016

10 World Thinkers of Theatre

http://tusharmhaske.blogspot.in/2016/12/10-world-thinkers-of-theatre.html

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कलाकार सृष्टि का निर्माण करता हैं....उसे आकार देता हैं .....विचार देता हैं और कलाकार लोगों के दिलों पर राज करता हैं ....कलाकार निर्माण की प्रक्रिया में चिंतन को जोड़ता हैं .....और एक परिवर्तन का माध्यम बन जाता हैं ....रंग चिंतन समाज में नयी ताजगी स्थापित करता है ....जानिए विश्व के जाने माने रंग चिंतक जिन्होंने समाज ,देश ,और विश्व में नाटक के माध्यम से बदलाव लाया .....
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कलाकार सृष्टि का निर्माण करता हैं....उसे आकार देता हैं .....विचार देता हैं और कलाकार लोगों के दिलों पर राज करता हैं ....कलाकार निर्माण की प्रक्रिया में चिंतन को जोड़ता हैं .....और एक परिवर्तन का माध्यम बन जाता हैं ....रंग चिंतन समाज में नयी ताजगी स्थापित करता है ....जानिए विश्व के जाने माने रंग चिंतक जिन्होंने समाज ,देश ,और विश्व में नाटक के माध्यम से बदलाव लाया .....

Wednesday, December 7, 2016

रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित और उत्प्रेरित और यूरोप और भारत में चर्चित नाटक “ड्राप बाय ड्राप : वाटर” का मंचन

रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित और उत्प्रेरित और यूरोप और भारत में चर्चित नाटक ड्राप बाय ड्राप : वाटर  का “18-22 दिसम्बर,2016  तक शांतिवन , पनवेल में होने वाली
 “Theatre of Relevance – Artistic- कलात्मक Exploration” Laboratory में मंचन










रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित और उत्प्रेरित और यूरोप और भारत में चर्चित नाटक ड्राप बाय ड्राप : वाटर पानी के निजीकरण का भारत में ही नहीं दुनिया के किसी भी हिस्से में विरोध करता है और सभी सरकारों को जनमानस की  इस भावना कि पानी हमारा नैसर्गिक और जन्म सिद्द अधिकार है से रूबरू कराता है और जन आन्दोलन के माध्यम से बहुरास्ट्रीय कम्पनियों को खदेड़कर सरकार को पानी की  निजीकरण नीति वापस लेने पर मजबूर करता है।

नाटक जल बचाव , सुरक्षा और जल सवंर्धन पर जोर देते हुए कैसे संस्कृति और  मानव जीवन के मूल्यों को पानी सहेजता है, पानी के इस साँस्कृतिक पहलु से दर्शकों को अवगत कराता है । नाटक ड्राप बाय ड्राप : वाटर पानी की उत्पत्ति , उत्सव और विध्वंस की यात्रा है । पानी का विकराल और विध्व्न्सात्मक रुप अभी अभी देश ने उतराखंड में एक त्रसादी के रूप में झेला है जो हमें हर पल चेताता है की प्रकृति और प्राकृतिक प्रक्रिया में लालची और मुनाफाखोर मनुष्य के स्वभाव को प्रकृति बर्दाश्त नहीं करेगी !

The Experimental Theatre Foundation
presents 
" Drop By Drop: Water " 
Written & directed By Manjul Bhardwaj
Water is the culture 
Helping us to nurture 
Water is the power 
let’s save it everywhere! 

Water is the miracle in nature. It generates itself through a natural cycle & cultivates, cleans, & helps all of us to survive. This universe or globe cannot exist without water. Nature proposes & man disposes. Has the man fulfilled his responsibility towards water? Yes being the living creatures, we all have right on water. But what about our responsibility to conserve, preserve & reserve it?

While realizing our own rights, do we also think of fellow human beings who are deprived of their rights? For most of us it is our basic need but for some of us has converted marketing & selling of this natural resource into their greed for money. So water is the business also! We are playing with this super power by destroying plants, ponds, wells, & rivers & replacing them with buildings, malls, factories. With man's greed for modernization, will water remain our means of survival or will it be a means to our end?
Water doesn't discriminate 
Water doesn't alienate 
It civilizes us 
It humanizes us 

The need of water is equal in everyone-men, women, rich, poor, higher caste, lower caste, etc. But being men, we have used our muscle power to make it the responsibility of women to fetch, fill, preserve & save water. Being upper caste, we have used caste power to make water our property. Water is also a symbol that we are human & also of our hospitality. It’s human to give water to anyone who needs it. Water denotes our civilization. More free is the water, more free or liberated the women of that society. More pollutes the water, more polluted are the human characters. More abundant is the water, less fights over it. Today we are fighting over taps, ponds, & rivers for water but the day will come soon where there will be World War over water. The globe will be warmed but human beings will become cold blooded to kill each other for survival, putting an end to civilization & humanity.

Wednesday, November 16, 2016

रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज के बहुचर्चित नाटक "गर्भ" का मंचन 29 नवम्बर ,2016 शांतिवन , पनवेल !

गर्भ-जीवन चिंतन को संवारता एक नाटक
·     धनंजय कुमार
 रंगकर्मी मंजुल भारद्वाज ने इसी गूढ़ प्रश्न के उत्तर को तलाशने की कोशिश की है अपने नवलिखित व निर्देशित नाटक गर्भमें. नाटक की शुरुआत प्रकृति की सुंदर रचनाओं के वर्णन से होती है, मगर जैसे ही नाटक मनुष्यलोक में पहुँचता है, कुंठाओं, तनावों और दुखों से भर जाता है. मनुष्य हर बार सुख-सुकून पाने के उपक्रम रचता है और फिर अपने ही रचे जाल में उलझ जाता है, मकड़ी की भांति. मंजुल ने शब्दों और विचारों का बहुत ही बढ़िया संसार रचा है गर्भके रूप में. नाटक होकर भी यह हमारे अनुभवों और विभिन्न मनोभावों को सजीव कर देता है. हमारी आकांक्षाओं और कुंठाओं को हमारे सामने उपस्थित कर देता है. और एक उम्मीद भरा रास्ता दिखाता है साँस्कृतिक चेतना और साँस्कृतिक क्रांति रूप में.
मुख्य अभिनेत्री अश्विनी का उत्कृष्ट अभिनय नाटक को ऊँचाई प्रदान करता है, यह समझना मुश्किल हो जाता है कि अभिनेत्री नाटक के चरित्र को मंच पर प्रस्तुत कर रही है या अपनी ही मनोदशा, अपने ही अनुभव दर्शकों के साथ बाँट रही है.

 

 

प्रख्यात रँगकर्मी मंजुल भारद्वाज का नाटक गर्भप्रतीक है खूबसूरत दुनिया का

·         संतोष श्रीवास्तव

आज का समय जो कि अतीत और वर्तमान के सबसे अधिक संकटपूर्ण कालखंडोँ मेँ से एक है प्रख्यात रँगकर्मी मंजुल भारद्वाज के नाटक गर्भ का मंचन चिंतन की नई दिशाओँ को खोजता सफलतम प्रयोग है। उपभोगतावादी और वैश्विक दृष्टिकोण से बाज़ारवादी माहौल मेँ जबकि  हमारे अन्दर की उर्जा  को ,आंच को , समाज और माहौल का महादानव सोख चुका है और चारोँ ओर नफरत , स्वार्थ , आतंक , भूमंडलीकरण और उदारवाद की आँधी बरपा है  गर्भ नाटक उन परतोँ को उघाडने मेँ कामयाब रहा है जो मानवता को लीलने को तत्पर है। नाटक की नायिका अश्विनी नान्देडकर ने तो जैसे अभिनय के नौ रसोँ की प्रस्तुति ही अपनी भंगिमाओँ से की है।
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‘गर्भ’: नई आशा, नए विश्वास, नए संकल्प का जन्म
………आलोक भट्टाचार्य

‘गर्भ’ आदि से अंत तक एक स्तब्धकारी, वाकरूद्धकारीरोमांचक अनुभव है. वाक्य-वाक्य में संदेश है, क्षोभ है, आक्रोश है, लेकिन फिर भी कहीं भी तनिक भी बोझिल या लाउड नहीं, अत्यंत रोचक है. भावप्रवण के साथ-साथ बौद्धिक भी.   सभी कलाकारों ने उच्चस्तरीय अभिनय किया है. लेकिन प्रमुख पात्रों की लंबी बड़ी भूमिकाओं के सफल निर्वाह के लिए निश्चित रूप से अश्विनी नांदेड़कर और सायली पावस्कर की विशेष सराहना करनी ही होगी. 
अत्यंत ही प्रभावशाली ‘गर्भ’ के गीतों की धुनों और पार्श्वसंगीत की रचना की है प्रसिद्ध गायिका-संगीतज्ञ डॉ. नीला भागवत ने. उनका काम भी सॉफ्ट होने के बावजूद परिपक्व है.
‘गर्भ’ देखकर मुझे लगा ‘आई हैव ओवरकम !’ ... धन्यवाद मंजुल !

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Saturday, November 12, 2016

प्रबंधन और थिएटर ऑफ़ रेलेवंस - मंजुल भारद्वाज





प्रबंधन और थिएटर ऑफ़ रेलेवंस
- मंजुल भारद्वाज
थिएटर का प्रबंधन यानि मैनेजमेंट से क्या रिश्ता है ? थिएटर की हमारी जिंदगी में क्या अहमियत है ?
बस मात्र मनोरंजन और उससे आगे कुछ नहीं । एक समाज के रूप में हम सब बड़े हँसते हुए यह कहते हैं कि पूरा संसार एक मंच हैं और हम सब इसके अभिनेता हैं । पर यह बात बस कहने भर की है । इसे कौन याद रखता है ? और इस तरह से हम जिंदगी की आकर्षक चुनौतियों और खोजी यात्राओं - अंतः और बाह्य को करने , तलाशने से वंचित रह जाते हैं ।
थिएटर का मतलब है समय और जगह (Time and Space) का प्रबंधन ।
मानव संसाधनों , भावनाओं , विचारों , सपनों , इच्छाओं , क्रियाओं , प्रतिक्रियाओं तथा कारोबारी , सामाजिक और संगठनात्मक व्यवहार के मैनेजमेंट के लिए थिएटर हमेशा एक जिवंत अनुभव है । एक विरेचन (कैथारसिस) प्रक्रिया है । क्या आपने कभी सोचा है कि आप मेनेजर , लीडर या कारोबारी उद्मयी कुछ भी हो थिएटर आपको सशक्त बना सकता है । थिएटर का अनुभव जीवन भर साथ रहता है । आज का विश्व वैल्यू बेस्ड लीडरशिप को मानता है । और थिएटर इस अपेक्षा को पूरा करने की राह दिखता है । आप भी जानते होंगे कि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सत्य के महत्व का ज्ञान कैसे हुआ था ? उन्होंने एक नाटक देखा था , राजा हरिश्चंद्र । इस नाटक ने युवा मोहनदास पर ऐसा प्रभाव डाला था , जिसने उन्हें स्वयं और उनके माध्यम से पूरे देश को सत्य की राह दिखाई थी । थिएटर हमारे अंदर वैल्यूज जगाता है । और वैल्यूज यानी मूल्यों पर आधारित नेतृत्व आज के मानव समाज की आवश्यकता है ।
आश्चर्यजनक बात है कि क्या हमने यह महसूस किया है कि थिएटर से हमे कितना कुछ मिल सकता है । इस वजह से स्कूली शिक्षा में भी थिएटर को नियमित स्थान नहीं मिल पाया है । यहाँ तक की हम चारों वेदों के नाम तो याद रखते हैं पर यह याद नहीं रखते की नाटक को पंचम वेद कहा गया है । थिएटर इंसान को प्रभावित करता है । थिएटर खुद को तलाशने की प्रयोगशाला है , अपने आपको चुनौती देने का मौका है , अपनी क्षमताओं और कमियों को पहचानने का जरिया है , दूसरों से जुड़ने , भावनात्मक प्रतिभा , अभिव्यक्ति , खुलापन आदि का रास्ता है । जिनसे की मानवीय प्रक्रियाओं की गहरी समझ पैदा होती है ।
थिएटर सृजनात्मकता है और आज के बिजनेस और मैनेजमेंट के लीडरों को अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सृजनात्मक होना जरुरी है । सृजनात्मक प्रतिभा बंधी बंधाई परिपाटी पर चलने की बंद मानसिकता से मुक्ति प्रदान करती है । सृजनात्मकता इंसान को अपनी सुविधाओं की चहारदीवारी से बाहर निकाल कर अपनी अंतःचेतना के बीहड़ में उतरने का साहस प्रदान करती है । उत्सुकता पैदा करती है । ध्यान लगाना सीखाती है और सभी विवादों व चिंताओं को स्वीकारना सीखाती है । सृजनात्मकता रोज़ नए रूप में पैदा होना सीखाती है । अपने आप को महसूस करना सीखाती है , और यही सब बातें थिएटर का बेसिक अनुशासन है । दूसरे लोगों के साथ आदान - प्रदान में सृजनात्मकता होना सबसे जरुरी मानवीय कुशलताओं में से एक है और थिएटर हमारी इन्ही कुशलताओं को विकसित करता है । अपनी खुद की जिंदगी को फिरसे बनाना सर्वोत्तम सृजनात्मकता है और थिएटर जीवन का पुनःसृजन है । थिएटर की प्रक्रियाएँ हमें खुद को पहचानने की , खुद का पुनःसृजन करने की कला सीखाती है जिससे की हम जीवन की विभिन्न धाराओं में परिवर्तन के संवाहक बन सकें ।
नेतृत्व क्षमता , संकल्पना , सृजनात्मकता , नवीनता , भावनात्मक विद्वता , टीम निर्माण , रणनीतिक आयोजना , व्यक्तिगत प्रभाव क्षमता , संप्रेषण , आत्मविश्वास कोई भी मैनेजमेंट का पक्ष हो , उसके लिए थिएटर अनुभव , सीखने और जीने का अनोखा जरिया है । थिएटर एक आइना है , यह आपकी आँखे खोलता है । और आपको आपका वर्त्तमान और भविष्य पहचानने में मदत करता है । यह तटस्थ विश्लेषण , उत्साह और विषय केंद्रित दृष्टि का विकास करता है । यह समक्ष के महत्त्व , अभिनवता तथा नाव परिवर्तन के लिए प्रेरणा प्रदान करता है ।
सिखने और नए प्रयोग करने के लिए थिएटर एक 360 डिग्री का माध्यम है । यह हमारे मस्तिक्ष , ह्रदय , शरीर और आत्मा यानि चरों आयामों को विकसित होने के सामान और एकसाथ अवसर देता है । किसी भी भविष्यदृष्टा नेता के लिए इन आयामों के प्रति जागरूक होना अनिवार्य है । थिएटर किसी भी व्यक्ति को उन आत्मिक ऊंचाइयों पर ले जाता है जहाँ पर व्यक्ति अपनी चुनौतियों का सुगमता से मुकाबला करने के योग्य बन जाता है । आज की जरुरत भी मूल्यों के विश्वास रखने वाले एक ऐसे नेतृत्व की है जो मानव सभ्यता को एक बेहतर कल की ओर ले जा सके ।
थिएटर ऊर्जा का सागर है और यह ऐसी पॉजिटिव प्रवृत्तियों का निर्माण करता है जिनके मनोविश्लेषणवादियों ने मानव व्यवहार का जन्म केंद्र बताया है । सही नजरिया , सही व्यवहार 100 प्रतिशत सफलता सुनिश्चित करता है । थिएटर अनुभव और शिक्षा का ऐसा सकसात्मक (पॉजिटिव) वातावरण बनाता है जोकि किसीके भी व्यवहार के लिए आवश्यक तत्त्व होते हैं। थिएटर संप्रेषण है। थिएटर मानवीय अनुभवों के संपूर्ण संप्रेषन (कम्युनिकेशन) का माध्यम है जोकि अभिनय करने वाले मानवों के द्वारा वास्तविकता का भ्रम पैदा करता है । दूसरे शब्दों में यह मानवों तथा बेहतर समझदारी के स्वभाव के बीच अमूर्त विचारों , अनुभवों और विभिन्न बारीक संबंधनों को मजबूत बनाने का प्रयास करता है। इसलिए थिएटर उच्चतम दर्जे का बौद्धिक व आत्मिक अभ्यास है । थिएटर के माध्यम से मौखिक एवं सांकेतिक दोनों प्रकार के संप्रेषणों का विकास होता है । यह बिनबोले संवादों में संवेदनात्मकता पैदा करता है । जैसे की आँखों से आँखों का संप्रेषण , संकेत , शरीर का उतना - बैठना , वेशभूषा , आवाज़ की टोन और पिच वगैरह । थिएटर निरिक्षण करने की क्षमता को बढ़ाता है और चीज़ों घटनाओं तथा व्यक्तियों का बारीकी से निरिक्षण करने का गुण किसीभी ट्रेनर या लीडर की खासियत होती है ।
थिएटर में वह क्षमता है जो विचारों , सपनों और अस्तित्व वादी अनुभवों। में जान डाल देती है जिससे एक लीडर को बहतर दृष्टि मिलती है और वह दूसरों को अपने सपनों से बांध सकता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित कर सकता है ।
आज के मैनेजमेंट के सामने सबसे बड़ी चुनौती है मुखौटों के पीछे छिपे चेहरों को पहचानने की और थिएटर इन मुखौटों को उतारने में काफी मदतगार हो सकता है । थिएटर प्रक्रिया लोगोंको मुखौटे खुद - ब - खुद उतार फेंकने के लिए प्रेरित करती है । मुखौटा उतरने के बाद वे खुद अपने वजूद को तलाशना शुरू कर देते हैं और फिर उन्हें खुद अपने आप पर , नेतृत्व करने की अपनी क्षमता पर विश्वास होने लगता है और वे अपने स्वयं , अपनी कंपनी , अपनी यूनिटों के लिए लक्ष्य निर्धारित करने लगते हैं । मुखौटा उतरने के बाद अपने आप ताज़गी और सामंजस्य की लहर प्रवाहित होने लगती हैं । सकारात्मक तरंगों और भावों से अपने स्वयं तथा दूसरों के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता आने लागती है जिससे प्रभावी ढंग से काम करने वाले लोगों की एक टीम बनने लगती है ।
थिएटर से आत्मविश्वास , विचारों में तारतम्यता , बहुमुखी प्रतिभा , सहजता , समय अनुसार उत्तर देने की क्षमता , सतर्कता , सावधानी , मुखरता आदि गुण आपने आप विकसित होते हैं । थिएटर आपको जीवंत और ऊर्जावान रखता है। तनाव दूर करने में भी थिएटर बड़ा कारगर है। यह तनाव मुक्त तो करता है साथ ही बहुत आनंद देता है। आज के व्यावसायिक संगठनों में लोगों में उत्साह और प्रसन्नता की कमी है । यह कमी थिएटर से दूर हो सकती है। प्रसन्नता मनुष्य को एक आतंरिक आनंद से भर देती है। और यह आनंद जीवन में आगे बढ़ने के जोश से लबालब कर देता है।
थिएटर हमारे अंदर छिपी संभावनाओं को झिंझोड़कर बाहर निकालता है । मैनेजरों के भीतर कहीं दबकर रह गयी सृजनात्मक शक्ति , श्रेष्ठता , कुछ कर दिखने का जज़्बा - इन सबको उभार कर सामने लाता है थिएटर। एक बार यह प्रतिभाएं सामने आ जाएं तो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत रूप में और संगठन के प्रतिनिधि के रूप में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए खुद ब खुद लालायित हो उठता है । और यह सफलता भी ऐसी होती है जो स्वयं को ही अनुभव नहीं होती बल्कि दूसरे लोग भी बोल उठते हैं , तारीफ कर उठते हैं । तभी तो इसकी सार्थकता है ।
किसी भी व्यावसायिक संगठन या औद्योगिक संगठन में प्रशिक्षण कार्यक्रम में रचनात्मक तकनीकें , टीम वर्कशॉप और रचनात्मक रूप से समस्याएँ समाधान आदि कई माध्यमों में थिएटर की उपयोगी भूमिका हो सकती है । अतः प्रबंधन विकास कार्यक्रम , कार्यक्रम बद्ध प्रबंधन विकास कार्यक्रम तथा अर्ध कार्यक्रम बद्ध विकास कार्यक्रमों में थिएटर प्रक्रिया के प्रभावी इस्तेमाल की बहुत गुंजाईश है। ये प्रशिक्षण प्रक्रिया क्लासरूम से बाहर निकलने की और बाहर निकल कर थिएटर तक जाने की एक ऐसी यात्रा है जो लगातार जारी रह सकती है। भेल के उच्चाधिकारियों ने नाटक ' We will prevail ' का मंचन किया ।
'थिएटर ऑफ़ रेलेवंस ' ने नई दिल्ली के ईएमपीआई बिज़नस स्कूल (EMPI Business School) में 3 - 4 सितम्बर 2007 तक 'Role of Theatre in Management' विषय पर एक कार्यशाला की थी । मानव संसाधन विषय में भारत के अग्रणी विशेषज्ञ डॉ. उदय पारीक ने इस संबंध में कहा की ," नई सृजनात्मक प्रक्रियाओं को बनाने का एक सबसे अच्छा रास्ता थिएटर है। चूँकि थिएटर सृजनात्मकता को बढ़ाता है। " थिएटर प्रबंधन में कई तरह से योगदान तथा सहयोग करता है । जब प्रबंधक वर्ग के लोग थिएटर में भाग लेते हैं तब सबसे पहला परिवर्तन जो दिखाई देता है वह यह होता है कि वे लोग अधिक आसानी से अपने आपको अभिव्यक्त करने लगते हैं । वे पहले की तरह खामोश या खींचे हुए से नहीं रहते हैं। वे एकदूसरे के प्रति पहले से ज्यादा खुले हुए तथा विश्वास से भरे नज़र आते हैं। लोग ख़ुशी से भरे नज़र आते हैं जो की आज की सबसे बढी संगठनात्मक आवश्यकता है। थिएटर में भाग लेने से उनमें एक दुसरे के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जागृत हुई। एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने में उन्हें ख़ुशी महसूस होने लगी। और एक अन्य जो सबसे बड़ा थिएटर का योगदान रहा वह था सृजनात्मकता। इतने कम समय में भी सभी प्रतिभागी कुछ विषयों पर अपना मौलिक चिंतन कर सके और उसे प्रभावी तरीकेसे दूसरों तक संप्रेषित कर सकें।
इसी तरह की एक कार्यशाला का आयोजन भारत हैवी एलेक्ट्रोनिक्ल लिमिटेड (भेल) में किया गया था। ये कार्यशाला वहां के वरिष्ठ कार्यपालकों के लिए आयोजित की गई थी। इसके उद्देश्यों में शामिल था - कारोबारी वातावरण को तथा अपने संगठन पर उसके प्रभाव को समझना , संगठन के सामने खड़ी चुनौतियों को समझना , रणनीतिक फैसले करने की प्रक्रिया को समझना और संगठन में परिवर्तन लाने में अपनी भूमिका को पहचानना। प्रबंधन विकास में थिएटर के माध्यम से सीखने के इस कार्यक्रम को प्रोग्राम डायरेक्टर पार्थसारथी तथा मंजुल भारद्वाज ने तैयार किया था।
इस कार्यशाला में उच्च कार्यपालकों की भागीदारी थी और इसकी थीम थी 'लीडिंग विथ विज़न' और 'स्ट्रेटेजिक थिंकिंग' इसका एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। इस कार्यशाला में थिएटर के हस्तक्षेप का जो मॉडल अपनाया गया वह अपने आप में एकदम अलग था ,"de freezing - intervening - experiential learning - theory developed by kolb" । शुरुवात में मायमिंग , ड्रीमिंग , नॉन लॉजिकल एक्टिविटीज वगैरह अभ्यासों के माध्यम से प्रतिभागियों की सृजनात्मक चिंतन प्रक्रिया को जागृत किया गया। उनमें से अनेक के लिए यह काफी मुश्किल प्रयोग रहा क्योंकि वे कल्पनाशक्ति का इस्तेमाल करने के बजाय अपनी विश्लेषण क्षमता का उपयोग कर रहे थे जिसके वे अभ्यस्त थे। काफी प्रयासों के बाद उनकी कल्पनाशक्ति और सृजनात्मक चिंतन को गतिमान किया जा सका। फिर कुछ छोटे छोटे कार्यों और खेलों के द्वारा उनमें भेल के आदर्शों जैसे की श्रेष्ठता , त्वरिता और सीखने की क्षमता को अनुभव के स्तर तक लाया जा सका।
किसी भी अनदेखी या अनजानी चुनौतियों का सामना करना आज के प्रबंधन वर्ग के सामने सबसे बड़ी समस्या है। इसके लिए 'अज्ञात की ओर' नामक अभ्यास से उन्हें सभी प्रकार की चुनौतियों और समस्याओं का सामना करने का हौंसला तथा दृष्टि दी गई। इस कार्य में उन्हें बंद आँखों से अपने मार्ग में पड़ने वाली विभिन्न बधाओं को पार करना था केवल अपने फैकल्टी के मौखिक निर्देशों के आधार पर इस अभ्यास प्रक्रिया में उन्होंने महसूस किया कि किस तरह से छोटे छोटे संकेत , किसी की छोटी सी मदत अपनी खुद की प्रेरणा , अपना आत्मविश्वास किस तरह से बाधाओं को पार करने में सहायक होता है।
Visualizer- influencer- doer एक दूसरे के दृष्टिकोण के साथ मिलकर कैसे काम किया जाता है इसे समझने के अभ्यासक्रम में उन्होंने तीन भूमिकाओं का अनुभव किया।
एक व्यक्ति किसी चीज , घटना या अनुभव के बारे में अपनी सोच दूसरे व्यक्ति तक इस तरह से संप्रेषित करता था जिससे की दूसरा व्यक्ति उसे पूरी तरह से समझ कर उसे कार्य रूप देता था। फिर इसी कार्य को समूह कार्य का रूप दे दिया गया। चार समूह में बँटे प्रतिभागियों को 15 मिनट में सोचना और फिर उस सोचे हुए विषय को प्रस्तुत करना था। इस अभ्यासक्रम से उन्हें व्यक्तिगत रूप से सोचना , जोखिम उठाना , आपस में हिस्सेदारी करना , बहुत से विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव करना , सुधर लाना , निर्णय लेने की क्षमता , दूसरों को प्रभावित करना आदि अनेक व्यवहारात्मक प्रक्रियाएं सीखने को मिली।
अंत में सभी समूहों ने अपनी अपनी प्रस्तुतियां रखी। यहाँ पर एक दूसरे को मदत करने की भावना इतनी अधिक बढ़ चुकी थी की प्रतिभागी एक दूसरे के समूह को बेहतर प्रस्तुति के लिए मदत करने लगे थे। इसके बाद सभी समूहों ने तैयारी से प्रस्तुति तक के अपने अपने अनुभवों को सबके साथ बाँटा था।
Defreezing के लिए प्रतिभागियों ने कार्टून , मोनोएक्टिंग , कविताओं और विभिन्न प्रकार के संकेतों द्वारा अपने आपको अभिव्यक्त किया।

Thursday, November 10, 2016

“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्य सिद्धांत पर आधारित लिखे और खेले गए नाटकों के बारे में- भाग - 7.. आज नाटक “बी -7”

नाटक “बी -7 ‘भूमंडलीकरण’, निजीकरण और बाजारवाद पर प्रहार है . सात पक्षियों के समूह ने अपने आप को पृथ्वी का श्रेष्ठ प्राणी समझने वाले मनुष्य की सोच पर तीखा व्यंग करते हुए ‘पृथ्वी’ को उसके प्रकोप से बचाने की बात कही है . पक्षी मनुष्य की ‘विकास’ संकल्पना को सिरे से खारिज़ करते हुए उसे मनुष्य की विनाश लीला बताते है ... “मनुष्य विकास के नाम पर अपनी कब्र खुद खोद रहा है” .. जंगल में रहने वाला ‘आदिवासी’ पक्षियों को महानगरों में रहने वाले ‘बुद्धिजीविओं’ से ज्यादा प्रगतिशील और ‘बुद्धिमान’ लगता है . ‘आदिवासी’ की दृष्टि सर्वसमावेशी और प्रगतिशील है जबकि दुनिया के तथाकथित महानगरीय ‘बुद्धिजीवी’ ढपोर शंख हैं  ! जर्मनी , यूरोप और भारत में अंग्रेजी , जर्मन और हिंदी में प्रयोग !
B –7:

The play B-7 depicts the story of 7 birds that are facing a threat for their survival. The birds decide to form a fact-finding committee to list out the threats to their survival. This way they enter in the human world and expose the reality of today’s world. How the children are being deprived from their childhood and how the globalization “Who are you to decide about us” is affecting the children in the world. In the end the birds committee suggest the world to save childhood and humanity. This was premiered in Germany. It is being performed in English, Hindi & German.

Premier in English – 7 SEPTEMBER, 2000 AT UNESCO AUDITORIUM IN HANNOVER ,GERMANY
प्रथम मंचन – 18 जनवरी ,2001 – पृथ्वी थिएटर , मुंबई  
औपनिवेशिक और पूंजीवादी देशों ने दुनिया को लूटने के लिए जब ‘भूमंडलीकरण’ के अस्त्र का उपयोग किया तब “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ ने अपने नाटक ‘बी -7’ के माध्यम से उसका पुरज़ोर विरोध किया . जो देश इसके पैरोकार हैं उन्ही देशों में इस नाटक के प्रयोग हुए . इस नाटक को अभिनीत भी उन कलाकारों ने किया जो अपने शोषण के खिलाफ़ संघर्ष कर अपने हक़ हासिल कर चुके थे ... ये सभी कलाकार ..बाल मजदूरी की चक्की में पिस रहे थे . “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ ने इन बच्चों में चेतना जाग्रत कर उन्हें ‘शिक्षा’ के अधिकार के लिए उत्प्रेरित किया . जब मराठी रंगभूमि के एक समीक्षक ने नाटक देख कर पूछा था “इन्ही कलाकारों” को आपने वैश्विक स्तर पर इस नाटक के मंचन के लिए क्यों चुना ? तब मेरा जवाब था ‘औपनिवेशिक चिंतन पर बने ड्रामा संस्थान के अभिनेता अपना पेट भरने के लिए .. अपने हुनर का उपयोग करते हैं ... उनमें ये चिंतन नहीं है की ‘नाटक’ सार्थक बदलाव लाता है . और व्यावसायिक रंगभूमि में कोई एक भी कलाकार आप बताइए जो इन कलाकारों से बेहतर ‘अभिनय’ करे तो उसको हम तुरंत इस नाटक में भूमिका देगें”
ये वाकया आपके साथ इसलिए साझा कर रहा हूँ ताकि ये सनद रहे की  ‘भूमंडलीकरण’ की स्वीकार्यता मध्यम वर्ग की बैशाखी से फलीभूत हो रही है ... ये मध्यम वर्ग ‘भूमंडलीकरण’ में अपना मोक्ष खोज रहा है ... विकास की मृगतृष्णा का शिकार है ..जो दिन रात जल , जंगल और ज़मीन को उजाड़ रहा है ..यहाँ तक की अब तो ‘पृथ्वी’ का बुखार भी बढ़ रहा है ... पर ‘मध्यम वर्ग इस पूंजीवादी ‘विकास’ की माला जप रहा है .... नाटक ‘बी -7’ इसी ‘विकास’ की और ‘भूमंडलीकरण’ की साज़िश को बेनक़ाब करता है !
जी-8 पर कटाक्ष है नाटक ‘बी-7’... जो सात पक्षियों के माध्यम से अपने कथ्य को बहुत मनोहारी और कलात्मक  रूप में दर्शकों के सामने रखता है ...

उम्मीद है आप सब को रंग साधना के यह पड़ाव नई रंग प्रेरणा दे पाएं...
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थिएटर ऑफ रेलेवेंसनाट्य सिद्धांत का सूत्रपात सुप्रसिद्ध रंगचिंतक, "मंजुल भारद्वाज" ने 12 अगस्त 1992 में किया और तब से उसका अभ्यास और क्रियान्वयन वैश्विक स्तर पर कर रहे हैं. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस रंग सिद्धांत के अनुसार रंगकर्म निर्देशक और अभिनेता केन्द्रित होने की बजाय दर्शक और लेखक केन्द्रित हो क्योंकि दर्शक सबसे बड़ा और शक्तिशाली रंगकर्मी है.
पूंजीवादी कलाकार कभी भी अपनी कलात्मक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं लेते इसलिए कला कला के लिएके चक्रव्यहू में फंसे हुए हैं और भोगवादी कला की चक्की में पिस कर ख़त्म हो जाते हैं . थिएटर ऑफ़ रेलेवंस ने कला कला के लिएवाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ा (भेदा) है और दर्शकको जीवन को बेहतर और शोषण मुक्त बनाने वाली प्रतिबद्ध ,प्रगतिशील,समग्र और समर्पित रंग दृष्टि से जोड़ा है .
थिएटर ऑफ़ रेलेवंस अपने तत्व और सकारात्मक प्रयोगों से एक बेहतर , सुंदर और मानवीय विश्व के निर्माण के लिए सांस्कृतिक चेतना का निर्माण कर सांस्कृतिक क्रांति के लिए प्रतिबद्ध है !




















Friday, October 28, 2016

“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्य सिद्धांत पर आधारित लिखे और खेले गए नाटकों के बारे में- भाग - 6.. आज नाटककार धनंजय कुमार लिखित नाटक “विद्या ददाति विनयम”

नाटककार धनंजय कुमार लिखित नाटक “विद्या ददाति विनयम– शिक्षा के / विद्या के अर्थ और उसके मर्म को उजागर करते हैं . आज बाजारवाद / पूंजीवाद और भारत में लार्ड मैकाले की औपनिवेशिक शिक्षा नीति से शिक्षा व्यवस्था और तंत्र शिक्षा को पेट भरने तक सिमटाये हुए हैं और जितना शिक्षा का प्रचार प्रसार हो रहा है उतना या उससे ज्यादा भ्रष्टाचार , हिंसा और हैवानियत बढ़ रही है . इसका सीधा अर्थ है की शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक गयी है , वो व्यापार तो बन गयी पर ‘विद्या’ नहीं बन पायी ! नाटक “विद्या ददाति विनयमशिक्षा के मौलिक  उद्देश्य को हाशिये पर रह रहे, शिक्षा से वंचित  बच्चों के माध्यम से रेखांकित करते हैं की शिक्षा ‘मनुष्य को इंसान’ बनाती है !
1998 में यानी 18 साल पहले पत्रकार , समीक्षक , सीरियल और फिल्म लेखक  और निर्देशक “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ के संपर्क में आए और सकारात्मक रूप से प्रभावित हुए . मूलतः धनंजय कुमार उग्र पर सहिष्णु समीक्षक हैं .. पटना के हर तरह के रंगकर्म से वाकिफ , पत्रकारिता में लेफ्ट के अखबार  से लेकर राईट तक वाया जनसत्ता , शांति जैसे सीरियल का लेखन कर चुकने के बाद , इंडस्ट्री , पत्रकारिता और रंगकर्म की कलाबाजियों से अवगत धनंजय कुमार का “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ से जुड़ाव एक सुखद और प्रेरक अनुभव है .
उस समय “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ की अवधारानाओं के तहत बाल मजदूर बच्चों के साथ सघन रंग कार्यशालाओं का आयोजन हो रहा था . मुंबई के उपनगर कांदिवली (पश्चिम) की “फ़ोकट नगर / गौतम नगर और गणेश नगर” की झोपड़पट्टियों में रहने वाले और गराज, चाय की टपरी /खोका ,फैक्ट्रियों में काम करने वाले  बच्चों की एक कार्यशाला को उत्प्रेरित करने के लिए “शांति” सीरियल के सह निर्देशक और कास्टिंग डायरेक्टर , रंगकर्मी विनोद कुमार को आमंत्रित किया था . इस कार्यशाला में विनोद कुमार के आग्रह पर धनंजय कुमार ने शिरकत की . ये जुगल बंदी रंग लाई और एक सार्थक आयाम को आपके सामने रखा . ये आयाम है धनंजय कुमार लिखित नाटक “विद्या ददाति विनयम”.  विनोद कुमार के निर्देशन में ये नाटक बाल नाट्य उत्सव की प्रथम प्रस्तुति के रूप में दर्शकों के सामने मंचित हुआ और इस नाटक ने बाल सहभागिता के रंगकर्म का नया इतिहास लिखा !
रंगकर्मी विनोद कुमार और नाटककार धनंजय कुमार 1999 से लगातार “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ आन्दोलन के रचनात्मक सहभागी हैं .
प्रथम मंचन : 13 जनवरी   , 1999
“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ की बाल रंग  कार्यशालाओं को एक सूत्र में पिरोकर .टी.एफ ने 1999 में ' बाल नाट्य उत्सव ' का आयोजन किया।  इस आयोजन में सामाजिक रूप से सम्पन्न बच्चों के साथ मजदूरों , फुटपाथी बच्चों , भीख  माँगने वाले बच्चों , बस्तियों के बच्चों ने अपने अपने चुने हुए विषयों पर नाटक लिखे, उनमें अभिनय किया स्वयं उन्हें निर्देशित कर ' बाल नाट्य उत्सव ' में प्रस्तुत किया।  ' बाल नाट्य उत्सव ' का आयोजन पृथ्वी थियेटर , कर्नाटक संघ बाल भवन इत्यादि प्रतिष्ठित रंगगृहों में होता है। 

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बाल नाट्य उत्सव ' के आयोजन को संजना कपूर, पृथ्वी थियेटर , क्राई, यूनिसेफ ,सी.सी. वी.सी  सैकड़ों सहभागी नाट्य मण्डलियों संस्थाओं  का सक्रिय रचनात्मक सहयोग मिल रहा है।  मुम्बई देश के विभिन्न समाचार पत्रों , टी.वी. चैनलों ने  ' बाल नाट्य उत्सव ' को प्रमुख खबर के रूप में प्रकाशित या प्रसारित किया।  

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बाल नाट्य उत्सव ' का उद्देश्य ' बच्चों ' को ' मंच' प्रदान करना है , 'जहाँ वो अपने को जैसा चाहें वैसा अभिव्यक्त करें। ' इस उत्सव के माध्यम से अपनी मन की बात, अपने दर्द , तड़प, चाहत , उमंगों और जरूरतों को समाज के सामने रखें। बच्चों के नाटक अपनी पूरी रंग परिपूर्णता के साथ  ' बाल नाट्य उत्सव ' में खेले जाते हैं।   

1999 में मुम्बई स्तर पर इस उत्सव की शुरुवात हुई और आज इस नाट्य उत्सव में मुम्बई के अलावा देश के विभिन्न राज्यों से बाल समूह शिरकत कर रहे हैं।  अपने मासूम अभिनय और निश्छल अभिव्यक्ति से बाल कलाकारों ने उत्सव की गरिमा रंगकर्म का गौरव बढ़ाया है।  1999- 2003 तक के पांच वर्षों में 1250 बच्चों ने 41 मौलिक एक अंकीय नाटकों का  मंचन  ' बाल नाट्य उत्सव ' में किया   

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बाल नाट्य उत्सव ' बाल सहभागिता की मिसाल है या यूँ कहें एक 'मशाल' है जिसने सारे देश को रोशनी दी है।  इस उत्सव का आयोजन नियमित रूप से हर साल देश के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग संस्थानों द्वारा किया जाता है इस उत्सव से देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय स्तर पर नाट्य गतिविधियों को गति मिली।   

उम्मीद है आप सब को रंग साधना के यह पड़ाव नई रंग प्रेरणा दे पाएं...
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थिएटर ऑफ रेलेवेंसनाट्य सिद्धांत का सूत्रपात सुप्रसिद्ध रंगचिंतक, "मंजुल भारद्वाज" ने 12 अगस्त 1992 में किया और तब से उसका अभ्यास और क्रियान्वयन वैश्विक स्तर पर कर रहे हैं. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस रंग सिद्धांत के अनुसार रंगकर्म निर्देशक और अभिनेता केन्द्रित होने की बजाय दर्शक और लेखक केन्द्रित हो क्योंकि दर्शक सबसे बड़ा और शक्तिशाली रंगकर्मी है.
पूंजीवादी कलाकार कभी भी अपनी कलात्मक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं लेते इसलिए कला कला के लिएके चक्रव्यहू में फंसे हुए हैं और भोगवादी कला की चक्की में पिस कर ख़त्म हो जाते हैं . थिएटर ऑफ़ रेलेवंस ने कला कला के लिएवाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ा (भेदा) है और दर्शकको जीवन को बेहतर और शोषण मुक्त बनाने वाली प्रतिबद्ध ,प्रगतिशील,समग्र और समर्पित रंग दृष्टि से जोड़ा है .
थिएटर ऑफ़ रेलेवंस अपने तत्व और सकारात्मक प्रयोगों से एक बेहतर , सुंदर और मानवीय विश्व के निर्माण के लिए सांस्कृतिक चेतना का निर्माण कर सांस्कृतिक क्रांति के लिए प्रतिबद्ध है !




































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