२६ अगस्त से २८ अक्टूबर २०१३ तक
यूरोप में मंचित !
नाटक “ड्राप बाय ड्राप : वाटर” पानी के निजीकरण का भारत में ही नहीं दुनिया के किसी भी हिस्से में विरोध करता है और सभी सरकारों को जनमानस की इस भावना कि “पानी हमारा नैसर्गिक और जन्म सिद्द अधिकार है” से रूबरू कराता है और जन आन्दोलन के माध्यम से बहुरास्ट्रीय कम्पनियों को खदेड़कर सरकार को पानी की निजीकरण नीति वापस लेने पर मजबूर करता है।
नाटक जल बचाव , सुरक्षा और जल सवंर्धन पर जोर देते हुए कैसे संस्कृति और मानव जीवन के मूल्यों को पानी सहेजता है, पानी के इस साँस्कृतिक पहलु से दर्शकों को अवगत कराता है । नाटक “ड्राप बाय ड्राप : वाटर” पानी की उत्पत्ति , उत्सव और विध्वंस की यात्रा है । पानी का विकराल और विध्व्न्सात्मक रुप अभी अभी देश ने उतराखंड में एक त्रसादी के रूप में झेला है जो हमें हर पल चेताता है की प्रकृति और प्राकृतिक प्रक्रिया में लालची और मुनाफाखोर मनुष्य के स्वभाव को प्रकृति बर्दाश्त नहीं करेगी !
इस नाटक को अपने अभिनय से सजीव और रोचक बनाया हैसात कलाकारों के समूह ने । ६ लडकियाँ और एक लड़के ने “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्य दर्शन की अवधारणा और प्रक्रिया में विगत डेढ़ वर्ष से अपने आप को तराशा है. ये कर्मठ कलाकार है अश्विनी नांदेडकर ,किरण पाल, प्रियंका रावत , काजल देओबंसी,प्रियंका वाव्हल,सायली पावसकर और मल्हार पानसरे .
मंजुल भारद्वाज ' दि एक्सपेरिमेंटल थियेटर फाउँडेशन ' के माध्यम से “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्य दर्शन के द्वारा रंगकर्म से सामाजिक एवम सांस्कृतिक रचनात्मक बदलाव प्रक्रिया के लिए देश विदेश में जाने जाते हैं .
' दि एक्सपेरिमेंटल थियेटर फाउँडेशन ' विगत २१ वर्षों से जमीनी स्तर पर, दूरदराज के इंटीरियर, आदिवासी बेल्ट, गांवों, कस्बों, से लेकर सड़कों, मंच, और प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय मंचों पर २८ से ज्यादा नाटकों का
२५००० से ज्यादा बार मंचन किया है !
26 अगस्त 2013 से 29 अक्टूबर 2013 तक ' दि एक्सपेरिमेंटल थियेटर फाउँडेशन ' के युवा नाट्य दल ने यूरोप में १०,००० किलोमीटर की यात्रा करते हुए जर्मनी,सिल्वेनिया,और ऑस्ट्रिया के विभिन्न शहरों में नाटक “ड्राप बाय ड्राप : वाटर” की २६ प्रस्तुतियाँ
की और “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्य दर्शन की
अवधारणा और प्रक्रिया पर आधारित २९ नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया इस पुरे
उपक्रम में ५००० से ज्यादा यूरोप वासियों सहभागी हुए ।
मंजुल भारद्वाज
भारतीय रँगमँच को विश्व मँच पर लाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
युवा रँगकर्मियों द्वारा मँचित ये नाटक यूरोप के युवा वर्ग के दिलों पर छा गया ।
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