थिएटर ऑफ रेलेवंस परफ़ॉर्मर और प्रशिक्षक अश्विनी नांदेडकर और सायली पावसकर द्वारा प्रस्तुत है अंबाला, हरियाणा में 1 से 10 जुलाई 2018 को हुई "थिएटर ऑफ रेलेवंस - स्वराजशाला" का लेखा जोखा!....
"राजनीति एक शुद्ध, पवित्र, सात्विकता की बहती अविरल धारा है" –मंजुल भारद्वाज
“मैं बदलाव हूँ..मैं मेरे देश का बदलाव हूँ, मैं मेरे देश की मालिक हूँ, मैं युवा हूँ.. इसी संकल्पना से शुरू हुई यूथ फार स्वराज आयोजित "थिएटर ऑफ रेलेवंस - स्वराजशाला"!
बदलाव हर किसी को चाहिए, हर कोई चाहता है की, समाज बदले,व्यवस्था बदले, देश के हालात बदलें पर कोई बदलाव का माध्यम बनता है क्या? बदलाव की परिभाषा स्वराजशाला में निर्माण हुई कि हर बदलाव की बुनियाद 'व्यक्ति' है इसलिए बदलाव हमेशा खुद से आता है... और एक एक रचनात्मक पहल से बदलाव की लहर आती है। इसी आयाम से राजनीति और राजनैतिक प्रक्रियाओं को नई दृष्टि से समझने की शुरुवात हुई ।
राजनीति से मेरा क्या लेना देना, अरे हम सभ्य और अच्छे लोग हैं, हमें राजनैतिक मामलों से दूर ही रहना चाहिए...ऐसे अनेक संवादों से हम हर पल रूबरू होते हैं। आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में राजनीति व्यक्तिगत तथा दलगत लाभों के लिए राज-सत्ता को प्राप्त करने तक की प्रक्रिया है, यही नज़रिया है राजनीति को देखने का। इस नज़रिए को उत्प्रेरक मंजुल भारद्वाज ने अंबाला, हरियाणा में 1 से 10 जुलाई 2018 तक चली "थिएटर ऑफ रेलेवंस -स्वराजशाला" में बदला और राजनीति पवित्र, शुद्ध, सात्विक,आध्यात्मिक और कलात्मकता की समग्र प्रक्रिया है यह दृष्टिकोण युवा सहभागियों को दिया। यूथ फार स्वराज आयोजित "थिएटर ऑफ रेलेवंस - स्वराजशाला" में हरियाणा और पंजाब के युवाओं ने सहभागिता की ।
देश का वर्तमान और भविष्य युवा है और जिन युवाओं को राजनीति की डोर संभालनी है, वो 4G डेटा में भ्रमित हैं या Globalized and liberalized world में लिप्त है। इसी कारण राजीनीति एक नीतिगत प्रक्रिया होते हुए भी नाकाम है। इस अवस्था मे जहाँ राजनैतिक क्रांति असम्भव है वहां संभावनाओं की जमीन तराशने के लिए हम युवा प्रतिबद्ध हैं। हरियाणा और पंजाब के युवा स्वराजियों ने राजनीति के दृष्टिगत बदलाव को साकार करने के लिए सांस्कृतिक चेतना से उभरे “थिएटर ऑफ रेलेवंस” रंग चिन्तन के सैद्धान्तिक प्रयोग और प्रक्रियाओं से निर्माण का इतिहास "थिएटर ऑफ रेलेवंस - स्वराजशाला" में रचा ।
"थिएटर ऑफ रेलेवंस" नाट्यदर्शन ने विगत 26 वर्षों से समाज और व्यक्तियों के मानस में ‘सांस्कृतिक चेतना’ जागृत कर नयी दृष्टि प्रदान करके जनमानस को सांस्कृतिक क्रांति के लिए प्रतिबद्ध किया है। “थिएटर ऑफ रेलेवन्स" अपनी रंगदृष्टि से, आत्महीनता से उपजे विकारों का उन्मूलन कर, आत्मबल से वैचारिक रूप का निर्माण करता है।
स्वराजशाला में युवा स्वराजियों ने स्वयं को देखना, स्वयं को जानना, स्व अध्ययन प्रक्रिया में अपने आपको ढाला। TOR की प्रक्रिया ने व्यक्तिगत स्वभाव के बाहरी आवरण को भेदकर अपने अन्तरंग को खंगोलने एवं विचार विमर्श के लिए प्रेरित किया।
(1)
नींद बहुत आती है
राम नाम के नारों
राम नाम के जुमलों
राम के नाम बजने वाले
मंजीरों के शोर में
नींद बहुत आती है
घनी नींद में सो जाता है
देश राम राज्य के लिए
तड़ीपार,जुमलेबाज़,भक्तों का झुण्ड
गाय और भक्ति भाव का
करते है दोहन, चुनाव में
परचम लहराते हैं
हिन्दू ,हिन्दूतत्व और हिन्दुस्तान का
अपने ही देशवासियों की लाश पर
संविधान की अर्थी निकालते हुए
सुलाते हैं सांस्कृतिक चिंतन को
चिरकाल निद्रा में,
हर पल मर्यादा पुरुषोत्तम की
मर्यादाओं को तार तार करते हुए
चीर निद्रा में सोयी आत्मा
नहीं जागती अग्नि परीक्षा के लिए
बस शरीर स्वाहा हो जाते हैं
और सन्नाटे से आवाज़ आती रहती है
राम नाम सत है
चिरनिद्रा में सोने वालों की गत है !
आज दिखावटी धर्मनिष्ठा और फ़ासीवादी विचारों की सत्ता है, वह आत्महीनता से ग्रस्त है, इसीलिए आज युवाओं को अपनी ऊर्जा सही दिशा में संचालित एवं कार्यान्वित करनी है..इसलिए स्वराजशाला में सहभागियों ने “आत्मबल और आत्महीनता” इन विषयों का चिंतन किया और हम “आत्मबल” यानी सकारात्मक-रचनात्मक विचारों से सम्पूर्ण रहेंगे यह निश्चय किया ।
युवा स्वराजियों ने थिएटर ऑफ रेलेवंस की कलात्मक प्रक्रियाओं से राजनीति को देखने और समझने की नयी दृष्टि का मनन किया । कला से जीवन नीति और राजनीति बदलने की पद्धतियों का अनुभव किया और समझा। जहां बदलाव की प्रयोगशाला व्यवहार की दुनियादारी से दूर है, स्वराजशाला एक प्रयोगशाला है जहाँ सीखने और सिखाने की प्रक्रिया एकतरफा नही है, समग्र है । इसीलिए सभी ने हर दिन अपने आत्मनुभव को चिट्ठी के रूप में लिखा। आत्मसंवाद के साथ समूह संवाद को मजबूत किया।
परिचय की परिभाषा को व्यापक रूप तब मिला जब स्वराजशाला के उत्प्रेरक एवं राजनैतिक चिंतक मंजुल भारद्वाज ने दीवारों पर लगे राजनैतिक चिंतकों के quotations का अध्ययन करने की प्रक्रिया में, युवा स्वराजियों की चेतना को Evolve किया, सभी साथी एक समूह में अपना परिचय देते हुए अपने विचार को प्रस्तुत कर रहे थे। वैचारिक रूप से समूह प्रक्रिया में हर सहभागी अपना वैचारिक परिचय दे रहा था । इससे हमारे विचार और हमारा कार्य ही हमारा परिचय है, यह युवा सहभागियों ने जाना ।
संगठन हमारा मूल्य है, भारतीय विरासत है, इससे साम्राज्यवादी ताकतें डरती हैं और हमारी भारतीय संस्कृति और एकता को ध्वस्त करती हैं। इस भारतीय विरासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अब हम युवाओं की है, इस बात को स्वीकार कर स्वराजशाला में संगठन को मजबूत करने के लिए बहुत उम्दा प्रक्रियाएं TOR सिद्धान्त के माध्यम से आगे बढ़ी , जैसे असहमतियों को खुलकर व्यक्त करने की आजादी, जहाँ असहमति किसी को ख़ारिज करने के लिए नही बल्कि संवाद कर, समझ निर्माण करने के लिए है ।
कला ही है जो जीवन और राजनीति का शुद्धिकरण करती है। इसका अनुभव हर सहभागी ने किया और लिया, जब उन्होंने थिएटर ऑफ रेलेबंस नाट्य सिद्धांत द्वारा अपनी अभिव्यक्ति की प्रक्रिया को रचनात्मक एवं कलात्मक आयाम से जोड़ा। नाट्य प्रस्तुतियों में अपनी “स्वराज यात्रा” को दर्शाया। खोजा अपने अंदर के व्यक्तित्व के रचनात्मक गुणों को और सृजन ऊर्जा से समूह का निर्माण हुआ। जब व्यक्ति एवं समूह एक दूसरे से जुड़ते हैं, तब मजबूत संगठन का निर्माण होता है।
स्वराजशाला में हर दिन सुबह चैतन्य अभ्यास प्रक्रिया नए आयामों को लेकर उजागर हो रही थी। जैसे मौसम और राजनीति का गहरा संबंध और उसका प्रभाव भी गहरा है। चैतन्य अभ्यास हर सहभागी को उसके, क्षेत्र, ज़मीन, काल, मौसम, स्वयं और प्रकृति से जोड़ता है। यह आयाम प्रस्थापित राजनीति को समझने के लिए आवश्यक है।
चैतन्य अभ्यास में अपने वैचारिक, भावनिक, शारीरिक और अध्यात्मिक आयामों को युवा स्वराजियों ने राजनैतिक दृष्टि से जोडा और अनुभव किया अपने होने की नई ऊर्जा,कलात्मक दृष्टि, नई उमंग, अपने भीतर के व्यक्तित्व को खोजने की प्राकृतिक चैतन्य प्रक्रिया।
आज देश को विश्वासात्मक नेतृत्व की खोज है, जो समतामूलक समाज निर्माण करे और देश की उम्मीद बने, वक्त को अपने हाथ में लेकर जीवन जीये। स्व-अध्ययन, निर्णायक भूमिका और सर्वसमावेशी व्यक्तित्व जैसे मूल्यों से सहभागियों ने नेतृत्व निर्माण की ओर पहल की ।
"राजनीति एक शुद्ध, पवित्र, सात्विकता की बहती अविरल धारा है" । "थिएटर ऑफ रेलेवंस - स्वराजशाला" में TOR TEAM (अश्विनी, सायली, कोमल, योगिनी व तुषार) ने राजनीति के चार मुख्य स्तम्भ "सत्ता, व्यवस्था, राजनैतिक चरित्र और राजनीति” को नाटक ‘राजगति’ की प्रस्तुति से स्वराजियों को रूबरू किया । राजनीति और राजनैतिक चरित्र की परिभाषा को गढ़ा। राजनीति की प्रक्रियाओं को समझने के लिए सहभागियों ने विचारधाराओं का अध्ययन किया।
विचारधारा का क्या अर्थ है? राजनैतिक चिंतकों ने अपने जीवन अनुभव और जीवन मूल्यों को अपने विचारों से विश्व के पटल पर रखा। इन विचारधाराओं का स्वराजशाला में राजनैतिक व्यक्तित्व "अजित झा" के मार्गदर्शन में सहभागियों ने विस्तार से मनन किया।
(2)
सत,सूत और सूत्र
अचंभित करने वाला
भ्रमित दौर है
‘लोकतंत्र’ संख्या बल का शिकार हो गया
पैसा और जुमला हावी हो गया
‘विवेक’ और विनय पर अंहकार छा गया
संविधान, तिरंगा खिलौना हो गये
अपने अपने रंग में सब नंगे हो गए
भगवा,हरा,लाल और नीला
चुनकर सब निहाल हो गए
इन्सान और इंसानियत लहूलुहान हो गए
भारत की विविधता के विरोधाभास
स्वीकारने का साहस,
गांधी का उपहास हो गया
बनिया है,बनिया है के शोर में
हर भारतीय से संवाद एक सौदा हो गया
सत्य के प्रयोग भ्रम हो गए
खुलापन और सबकी स्वीकार्यता
गाँधी के पाखंड हो गए
जिनको चाहिए था बस अपना
तुष्ट हिस्सा
वो तुष्टीकरण का शिकार हो गए
आज़ादी का जश्न मातम हो गया
गांधी के चिंतन की चिता पर
अपने अपने रंगों की ताल ठोक
पूरी युवा पीढ़ी को भ्रमित कर
कई राम,कई अम्बेडकर और
कई मार्क्स की सन्तान हो गए
अस्मिता,स्वाभिमान और पहचान
के नाम पर जपते हैं अपने अपने
भगवान की माला
और आग लगाते हैं उसी धागे को
जो जोड़ता है,पिरोता है
एक सूत्र में विविध भारत को
अपने सत और सूत से
जिसका नाम है ‘गांधी’!
‘राजगति’ नाटक के माध्यम से गांधी – भगत सिंह - अम्बेडकर - कार्ल मार्क्स इन राजनैतिक चरित्रों और उनके चिंतन (विचारधारा), चेतना को अधिक स्पष्टता से सहभागियों ने अनुभव किया,चिंतन की एक मजबूत बुनियाद का निर्माण हुआ और राजनैतिक दृष्टिगत मंथन प्रक्रिया को व्यापक गति मिली ।
1991 का वर्ष भारत में एक अनोखा दौर लेकर आया मंडल, कमंडल और भूमंडल! मंडल, कमंडल और भूमंडल ने भारत के सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक ताने बाने को नष्ट कर उसके सामने नये भयावह संकटों का जाल फैलाया है । भूमंडलीकरण के बाद भारत के साथ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था बदल गयी। संस्कृति, संवाद, साहित्य और कला के बजाय व्यापार बड़ा हुआ ‘खरीदों और बेचो के मन्त्र ने मनुष्यता का ह्रास कर तकनीक के युग का सूत्रपात किया । व्यक्ति का वस्तुकरण हो गया ,विज्ञान के सिद्धांतों को तकनीक तक सीमित कर अंधविश्वास का बोलबाला हो गया यानी आधुनिकता के नाम पर विकास की मोहर लग गई ।आज की व्यवस्था में सभी विकास का गीत गा रहे हैं। विकास का मुखौटा विनाशकारी है। WTO की साजिश यानी 1. कैसे साम्राज्यवादी और पूंजीवादी ताकतें मानवीय मूल्यों को ध्वस्त कर रही हैं और 2. भारतीय जीवन जो विविध, कृषिप्रधान, संगठन और सौहार्दपूर्ण था उसको ख़त्म कर रहीं हैं 3.संवैधानिक मूल्य और प्राकृतिक सम्पन्नता का विध्वंस कर रहीं हैं, इन आयामों को थिएटर ऑफ रेलेवंस की प्रक्रियाओं ने युवा स्वराजियों के साथ उजाकर किया और उन्हें एक राजनैतिक दृष्टिकोण प्रदान किया। राजनीति का मतलब है, जड़ तक पहुचना । एक शब्द से राजनीति की आबो हवा बदलती है और एक शब्द से विचारधारा की जमीन पता चलती है।
सामाजिक न्याय के प्रश्न पर राजीव गोदारा और सुरेन्द्र पाल सिंह ने व्यापक सन्दर्भों के साथ सहभागियों की भ्रांतियों को दूर किया । नाटक ‘मैं औरत हूँ’ के माध्यम से सहभागियों ने जेंडर के विषय पर विमर्श किया । हरियाणा के साथियों का राजेन्द्र चौधरी ने ‘जैविक खेती’ की प्रक्रिया और प्रारूप पर मार्गदर्शन किया । पंजाब के साथियों को हरमीत कौर बरार ने जेंडर समानता, नरेंद्र संधू ने सरकारी योजनाओं और कुलदीप पूरी ने शिक्षा की अवधारणा और अवस्था पर मार्गदर्शन किया ।
आजादी के आज 71 साल बाद, हम भगत सिंह, गांधी,शिवाजी,गौतम बुद्ध, अम्बेडकर इन चरित्रों को देखते है, उन्हें अपना अभिमान समझते हैं, आदर्श मानते हैं । पर क्या हम उनके जीवन मूल्यों को अपने अंदर उतारते हैं? आज हर राजनैतिक चरित्र, या तो किसी पक्ष का है, या किसी राज्य का,पर यह राजनैतिक चरित्र हमारे जीवन हिस्सा नहीं है। वह सम्पूर्ण भारत देश का नहीं है।इसीलिए आजादी के इतने सालों बाद भी हमारे देश में एक राजनैतिक चरित्र निर्माण नहीं हुआ। इस विरोधाभास को उत्प्रेरक मंजुल भारद्वाज ने रेखांकित किया और युवाओं को इन राजनैतिक चरित्रों के आत्मसंघर्ष को गहराई से समझने का दृष्टिकोण प्रदान किया । हम युवाओं को आज के इस राजनैतिक परिपेक्ष्य में यह समझना महत्वपूर्ण रहा जिससे हर युवा स्वराजी ने राष्ट्रनिर्माण के लिए अपनी भूमिका को समझा और "खुद का राज के साथ खुद पर राज" की "स्वराज" नीति का स्वीकार किया।
यूथ फार स्वराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष ने राजीव गोदारा और सुरेन्द्र पाल सिंह के मार्गदर्शन में अपने साथियों रिषव,अमित,अंकित, लवप्रीत और सभी सहभागियों के साथ मिलकर भविष्य की रुपरेखा तैयार की ।
थिएटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत के कलात्मक कैनवास पर, बदलाव की जमीन पर, सिद्धांतों को मथ कर स्वभाव के आईने में सभी सहभागियों ने ‘अपने राजनैतिक’ अस्तित्व को समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक रंगों से सजाया!
(3)
मेरा रंग
मेरा रंग कौन सा है
मेरा रंग श्वेत है
सफ़ेद है मेरा रंग
मैं कलाकार हूँ
संवाद मेरा प्राण है
मेरी कला का मक़सद है
विश्व शांति, विश्व कल्याण
हम अपनी मुक्ति के लिए
मुक्तिधाम में भी सफ़ेद रंग में
लिपट कर जाते हैं
मेरे सफ़ेद ‘रंग’ में
सारे रंग समाहित हैं
बिल्कुल ‘सूर्य’ किरण की तरह
आपको वही रंग दिखेगा
जो रंग आपकी दृष्टि पर चढ़ा है
या जो रंग ‘आप’ देखना चाहते हैं
जैसे ‘सूर्य’ की किरण को प्रिज्म से
देखने पर हर रंग नज़र आता है
यहाँ ‘सूर्य’ मेरी ‘कलात्मक चेतना’ है
‘प्रिज्म’ है आपका ‘दृष्टिकोण”
वैसे मुझे ‘हरा’ रंग प्रिय है
क्योंकि ‘प्रकृति’ हरी है
मुझे सांस देने वाली ‘वनस्पति’ हरी है
हरी भरी है मेरी ‘वसुंधरा’
‘केसरी’ और बसंती रंग मुझे प्रेरित करते हैं
कुर्बानी के लिए, मानव कल्याण के लिए
हर पल ‘कुर्बानी’ को तत्पर हूँ मैं !
लाल रंग मेरी रगों में दौड़ता है
मेरे लहू का रंग ‘लाल’ है
लाल ‘रंग’ प्रेम है
प्रेम से प्रेम है मुझे
बिना ‘प्रेम’ के
दुनिया नहीं जी सकती
नहीं चल सकती
प्रेम दुनिया की आत्मा है
मेरा ‘रंग’ सफ़ेद है
जिसमें समाए हैं सारे ‘रंग’
मैं कलाकार हूँ
मैं जीवन का शिल्पकार हूँ
मेरा रंग सफ़ेद है !
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नोट : तीनों कविताओं और स्वराजशाला में प्रस्तुत नाटक ‘राजगति’ और ‘मैं औरत हूँ’ के सृजक हैं मंजुल भारद्वाज
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