दर्शक सहयोग और सहभागिता से उत्प्रेरित रंगदर्शन “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” के 26 वर्ष पूर्ण!
दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में नाट्य प्रस्तुतियों,रंग संवाद और कार्यशालाओं से 10 – 26 अगस्त तक सजेगा “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्य उत्सव!
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में पूंजीवादी फासीवाद के वर्तमान दौर में जहाँ मीडिया सरकार का जयकारा लगाकर मुनाफ़ा कमा रहा है ऐसे समय में जनता के सरोकारों को “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्य सिद्धांत प्रखरता से जनता के सामने उजागर कर रहा है.
26 वर्षों से सतत सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान के बिना अपनी प्रासंगिकता और अपने मूल्य के बल पर यह रंग विचार देश विदेश में अपना दमख़म दिखा रहा है, और देखने वालों को अपने होने का औचित्य बतला रहा है. सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’ सहभागिता पर खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” रंग आन्दोलन मुंबई से लेकर मणिपुर तक.
“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने जीवन को नाटक से जोड़कर रंग चेतना का उदय करके उसे ‘जन’ से जोड़ा है। अपनी नाट्य कार्यशालाओं में सहभागियों को मंच,नाटक और जीवन का संबंध,नाट्य लेखन,अभिनय, निर्देशन,समीक्षा,नेपथ्य,रंगशिल्प,रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों पर प्रशिक्षित किया है और कलात्मक क्षमता को दैवीय वरदान से हटाकर कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तरफ मोड़ा है। पिछले 26 सालों में 16 हजार से ज्यादा रंगकर्मियों ने 1000 कार्यशालाओं में हिस्सा लिया है । जहाँ पूंजीवादी कलाकार कभी भी अपनी कलात्मक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं उठाते, इसलिए वे ‘कला’ कला के लिए के चक्रव्यहू में फंसे हुए हैं और भोगवादी कला की चक्की में पिस कर ख़त्म हो जा रहे हैं, वहीं थिएटर ऑफ़ रेलेवंस ने ‘कला’ कला के लिए वाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ा,हजारों रंग संकल्पनाओं को रोपा और अभिव्यक्त किया है । अब तक 28 नाटकों का 16,000 से ज्यादा बार मंचन किया है.
भूमंडलीकरण पूंजीवादी सत्ता का ‘विचार’ को कुंद, खंडित और मिटाने का षड्यंत्र है. तकनीक के रथ पर सवार होकर विज्ञान की मूल संकल्पनाओं के विनाश की साज़िश है. मानव विकास के लिए पृथ्वी और पर्यावरण का विनाश, प्रगतिशीलता को केवल सुविधा और भोग में बदलने का खेल है. फासीवादी ताकतों का बोलबाला है भूमंडलीकरण ! लोकतंत्र, लोकतंत्रीकरण की वैधानिक परम्पराओं का मज़ाक है “भूमंडलीकरण”! ऐसे भयावह दौर में इंसान बने रहना एक चुनौती है... इस चुनौती के सामने खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन. विगत 26 वर्षों से फासीवादी ताकतों से जूझता हुआ!
भूमंडलीकरण और फासीवादी ताकतें ‘स्वराज और समता’ के विचार को ध्वस्त कर समाज में विकार पैदा करती हैं जिससे पूरा समाज ‘आत्महीनता’ से ग्रसित होकर हिंसा से लैस हो जाता है. हिंसा मानवता को नष्ट करती है और मनुष्य में ‘इंसानियत’ का भाव जगाती है कला. कला जो मनुष्य को मनुष्यता का बोध कराए...कला जो मनुष्य को इंसान बनाए!
फासीवादी ताकतों को ध्वस्त कर समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निमार्ण के लिए ‘राजनैतिक परिदृश्य’ को बदलने की आवश्यकता है और इसी क्रम में आत्महीनता के भाव को ध्वस्त कर ‘आत्मबल’ से प्रेरित ‘राजनैतिक नेतृत्व’ निर्माण के लिए 10-15 अगस्त को “स्वराजशाला” रेवाड़ी, हरियाणा में होगी.
स्वराज इंडिया आयोजित इस स्वराजशाला में “कोई विकल्प नहीं यानी मीडिया के TINA factor” के षड्यंत्र के भ्रम को तोड़ते हुए “लोकतंत्र में जनता का कोई विकल्प नहीं होता” के तथ्य से स्वराज योगियों को रूबरू कराते हुए थिएटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत के कलात्मक कैनवास पर, बदलाव की जमीन तैयार होगी. सिद्धांतों को मथ कर स्वभाव के आईने में ‘अपने राजनैतिक’ अस्तित्व को समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक रंगों से ‘स्वराज’ के विचार को साकार करने के लिए विशिष्ट विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में स्वराज योगियों को उत्प्रेरित किया जाएगा! राजनैतिक और सामाजिक न्याय प्रकियाओं को समझने के लिए नाटक ‘राजगति’,’मंडल,कमंडल,भूमंडल’ और “मैं औरत हूँ’ प्रस्तुत किये जायेगें.
इंसानी स्वभाव को उत्प्रेरित करने के लिए सांस्कृतिक चेतना बोध अनिवार्य है. ‘रंगकर्म’ सांस्कृतिक चेतना बोध का माध्यम है. रंगकर्म की अपनी निहित चुनौतियां है इन्ही चुनौतियां से जूझने और समझने के लिए रंग परिवर्तन स्टूडियो थिएटर ने दिल्ली NCR यानी गुड़गांव में 16 अगस्त,2018,शाम 6 बजे “रंग संवाद:रंगकर्म की संभावनाएं और समस्याएं” का आयोजन किया है.
इस कलात्मक मिशन
को आपकी कला से मंच पर साकार करने कलाकार है अश्विनी नांदेडकर, योगिनी चौक, सायली पावसकर,कोमल खामकर,तुषार म्हस्के और बबली रावत! उत्सव में
प्रस्तुत नाटकों का लेखन निर्देशन और कार्यशालाओं को उत्प्रेरित करेंगें रंगचिन्तक
मंजुल भारद्वाज. आपके सक्रिय सहयोग और
सहभागिता की अपेक्षा !
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