“गर्भ”-जीवन चिंतन को संवारता एक नाटक
· धनंजय कुमार
रंगकर्मी मंजुल भारद्वाज ने इसी गूढ़ प्रश्न के
उत्तर को तलाशने की कोशिश की है अपने नवलिखित व निर्देशित नाटक “गर्भ“ में. नाटक की शुरुआत
प्रकृति की सुंदर रचनाओं के वर्णन से होती है, मगर जैसे ही नाटक मनुष्यलोक में
पहुँचता है, कुंठाओं, तनावों और दुखों से भर जाता है. मनुष्य हर बार सुख-सुकून
पाने के उपक्रम रचता है और फिर अपने ही रचे जाल में उलझ जाता है, मकड़ी की भांति.
मंजुल ने शब्दों और विचारों का बहुत ही बढ़िया संसार रचा है “गर्भ”
के रूप में. नाटक
होकर भी यह हमारे अनुभवों और विभिन्न मनोभावों को सजीव कर देता है. हमारी
आकांक्षाओं और कुंठाओं को हमारे सामने उपस्थित कर देता है. और एक उम्मीद भरा
रास्ता दिखाता है साँस्कृतिक चेतना और साँस्कृतिक क्रांति रूप में.
मुख्य अभिनेत्री अश्विनी का उत्कृष्ट
अभिनय नाटक को ऊँचाई प्रदान करता है, यह समझना मुश्किल हो जाता है कि अभिनेत्री
नाटक के चरित्र को मंच पर प्रस्तुत कर रही है या अपनी ही मनोदशा, अपने ही अनुभव
दर्शकों के साथ बाँट रही है.
प्रख्यात रँगकर्मी मंजुल भारद्वाज का नाटक “गर्भ” प्रतीक है खूबसूरत दुनिया का
·
संतोष श्रीवास्तव
आज का समय जो कि अतीत और वर्तमान के सबसे अधिक संकटपूर्ण
कालखंडोँ मेँ से एक है प्रख्यात रँगकर्मी मंजुल भारद्वाज के नाटक “गर्भ”
का मंचन चिंतन की नई दिशाओँ को खोजता सफलतम प्रयोग है। उपभोगतावादी और वैश्विक दृष्टिकोण से
बाज़ारवादी माहौल मेँ जबकि हमारे
अन्दर की उर्जा को
,आंच को , समाज और माहौल का महादानव सोख चुका है
और चारोँ ओर नफरत , स्वार्थ
, आतंक , भूमंडलीकरण और उदारवाद की आँधी बरपा है “गर्भ” नाटक उन परतोँ को उघाडने मेँ कामयाब
रहा है जो मानवता को लीलने को तत्पर है। नाटक की नायिका अश्विनी नान्देडकर ने तो
जैसे अभिनय के नौ रसोँ की प्रस्तुति ही अपनी भंगिमाओँ से की है।
…………
‘गर्भ’: नई आशा, नए विश्वास, नए संकल्प का जन्म
………आलोक
भट्टाचार्य
‘गर्भ’ आदि से अंत तक एक स्तब्धकारी, वाकरूद्धकारीरोमांचक अनुभव है.
वाक्य-वाक्य में संदेश है, क्षोभ है, आक्रोश है, लेकिन फिर भी कहीं भी तनिक भी
बोझिल या लाउड नहीं, अत्यंत रोचक है. भावप्रवण के साथ-साथ बौद्धिक भी. सभी कलाकारों ने उच्चस्तरीय अभिनय किया है.
लेकिन प्रमुख पात्रों की लंबी बड़ी भूमिकाओं के सफल
निर्वाह के लिए निश्चित रूप से अश्विनी नांदेड़कर और सायली पावस्कर की विशेष सराहना
करनी ही होगी.
अत्यंत ही प्रभावशाली ‘गर्भ’ के गीतों की धुनों और पार्श्वसंगीत की
रचना की है प्रसिद्ध गायिका-संगीतज्ञ डॉ. नीला भागवत ने. उनका काम भी सॉफ्ट होने
के बावजूद परिपक्व है.
‘गर्भ’ देखकर मुझे लगा ‘आई हैव ओवरकम !’ ... धन्यवाद मंजुल !
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