Friday, October 9, 2020

रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज का नाटक राजगति ‘राजनीति गंदी है’ के कलंक को धोता है !



 नाटक राजगति ‘राजनीति गंदी है’ के कलंक को धोता है और देशवासियों को राजनीति में विवेक सम्मत सहभगिता के लिए प्रेरित करता है!

रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज का नाटक राजगति भारत और विश्व की अलग अलग राजनैतिक विचारधाराओं के अंतर्विरोधों को विश्लेषित कर मानव कल्याण के लिए उनके समन्वय की अनिवार्यता को रेखांकित करता है. नाटक भूमंडलीकरण के विनाश और विकास के पाखंड पर प्रहार करता है. कैसे भूमंडलीकरण ने मनुष्य को खरीदने और बेचने की वस्तु में बदलकर विश्व की लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं को पूंजीवाद की कठपुतली बना, विकारी लोगों को सत्ता में बैठा दिया है. यह विकारी लोग पूरी पृथ्वी और मनुष्यता को लील रहे हैं.
नाटक राजगति केवल सत्ता परिवर्तन के लिए होने वाले आंदोलनों की निरर्थकता को उजागर करता है. हाल ही में भारत में हुए एक भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से सत्ता तो बदल गई. पर महाभ्रष्ट और विकारी उस पर विराजमान हो गए जो अर्थव्यवस्था के साथ साथ लोकतान्त्रिक संस्थाओं का ध्वंस कर संविधान के अवसान में दिन रात लगे हुए हैं.
नाटक राजगति जनता को अपनी राजनैतिक मुक्ति के लिए चार सूत्र देता है सत्ता,व्यवस्था,राजनैतिक चरित्र और राजनीति. सत्ता में हमेशा कालिख रहेगी चाहे वो किसी की भी हो और कोई भी हो, व्यवस्था अपनी जड़ता से किसी भी परिवर्तन को प्रभावहीन बना देती है, राजनैतिक चरित्र गढ़े बिना पूरी राजनैतिक प्रक्रिया पाखंड का शिकार होती है. इसलिए सत्ता,व्यवस्था,राजनैतिक चरित्र और राजनीति के चारों आयामों को एक साथ समझना अनिवार्य है. नाटक राजगति ‘राजनीति’ को पवित्र नीति मानता है. जनता से राजनीति में विवेकपूर्ण सहभागिता की अपील करता है. राजनीति सत्ता,व्यवस्था और राजनैतिक चरित्र की गंदगी को साफ़ करने की नीति है.
हर भारतवासी में राजनीति की पवित्र मशाल को जलाकर स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को गुलामी से मुक्त कराया. पर चंद सत्ता लोलुपों,सत्ता के दलालों ने ‘राजनीति गंदी है’ के कलंक को सुनियोजित षड्यंत्र से 132 करोड़ देशवासियों के माथे पर चिपका दिया है. जिसकी वजह से जनता राजनैतिक प्रक्रिया में सहभागी नहीं होती. कोई सहभागी हो रहा है तो सिर्फ़ सत्ता लोलुप जो धनपशुओं के बल पर वोट खरीद कर हर चुनाव में लोकतंत्र को कलंकित करता है.
एक ऐसे विध्वंसक काल में जब विकारी सत्ताधीश जनता को उसी के मल,मवाद,विकार और पाखंड में धंसा कर, राष्ट्रवाद के नाम पर वोट लेकर, समाज को उन्मादी भीड़ बना, जनता को कूट रहा हो, तब नाटक राजगति देशवासियों को देश का मालिक होने का अहसास दिला संविधान सम्मत,विविधता के विधाता भारत के निर्माण की पैरवी करता है. राजगति नाटक ‘राजनीति गंदी है’ के कलंक को धोता है और देशवासियों को राजनीति में विवेक सम्मत सहभगिता के लिए प्रेरित करता है .

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