कला एक निरंतर खोज है ..और कलाकार एक अविरल खोजी ...विवशता को हम अपना भाग्य मान लेते हैं और विडम्बना को ‘नीयती’ .. और अपने आप को एक पूर्वनिर्मित ‘बक्से’ में या व्यवस्था के पिंजरे में बंद कर लेते हैं .. और उस पिंजरे में अभिशप्त जीवन को अपना लक्ष्य और उस लक्ष्य के पूर्वनिर्धारित कर्मों यानी क्रिया को अपना ‘धर्म’ मान लेते है ... पर जो इस ‘पिंजरे’ के बाहर ..अन्दर .. देख सकता है ..उसको खंगोल सकता है .. इस पिंजरे को तोड़ने का उपाय जानता है ...वो कलाकार है .क्योंकि कलाकार का मतलब है काल का आकार... काल यानी कल ..और कल को आकार देने वाले को कहते हैं ‘कलाकार’...
कैसे पढ़े लिखे हैं सब ...जो मशीन को श्रेष्ठ और ‘विचार’ को पतित समझते हैं .. वो एक पल भी ठहर कर ये नहीं मनन करते की ‘विचार’ से उन्नत मानवीय तकनीक कोई नहीं हैं ... ये विचार सब इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि व्यवस्था एक भीड़ बन गयी है .. और ‘पेट’ के मंदिर के दर्शन की भगदड़ वाली दौड़ में अँधा होकर ‘पेट’ बचाने के लिए अंधी होकर दौड़ रही है ..कौन मरा ..कौन कुचला गया ...किसको परवाह ..क्योंकि ‘लुटेरों’ ने अपनी व्यवस्था में सोच समझकर ये सुनियोजित किया है की ‘भूख’ की तलवार हमेशा लटकी रहे और .. भूख मिटाने के एवज में ‘चेतना’ बिकती रहे ... इस चेतना को जो सहेज कर रखते हैं वो ‘कलाकार’ हैं यानी “तत्व ... व्यवहार ... प्रमाण और सत्व” की चतुर्भुज को जो साधता है वो है ‘कलाकार ..रचनाकार .. सृजनहार ...क्रिएटर’ !
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संक्षिप्त परिचय -
“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।
एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।
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