· धनंजय कुमार
मनुष्य प्रकृति की
सबसे उत्तम कृति है.शायद इसीलिए प्रकृति ने जो भी रचा- नदी, पहाड़, झील, झरना,
धरती, आसमान, हवा, पानी, फूल, फल, अनाज, औषधि आदि सबपर उसने अपना पहला दावा ठोंका.
इतने से भी उसका जी नहीं भरा तो उसने अन्य जीव-जंतुओं, यहाँ तक कि अपने जैसे
मनुष्यों पर भी अपना अधिकार जमा लिया. उसे अपने अनुसार सिखाया-पढ़ाया और नचाया. जो
उसकी इच्छा से नाचने को तैयार नहीं हुए, उन्हें जबरन नचाया. क्यों ? किसलिए ? अपने
सुख के लिए. कभी शान्ति के नाम पर तो कभी क्रान्ति के नाम पर, कभी मार्क्सवाद के
नाम पर तो कभी साम्राज्यवाद के नाम पर. यह क्रम आदिकाल से आजतक बदस्तूर जारी है.
मगर कौन है जो सुखी है? धरती का वो कौन सा हिस्सा है, जहाँ सुख ही सुख है ?
प्रकृति ने पूरी कायनात को सुंदर और सुकून से भरा बनाया. सबपर पहला अधिकार भी हम मनुष्यों
ने ही हासिल किया, फिर भी हम मनुष्य खुश क्यों नहीं हैं..? कहने को तो दुनिया के
विभिन्न धर्मो और धर्मग्रन्थों में इस प्रश्न का उत्तर है, बावजूद इसके अनादिकाल
से अनुत्तरित है तभी तो दुनिया का कोई भी समाज आजतक उस सुख-सुकून को नहीं पा सका
है, जिसे पाना हर मनुष्य का जीवन लक्ष्य होता है.
रंगकर्मी मंजुल भारद्वाज ने
इसी गूढ़ प्रश्न के उत्तर को तलाशने की कोशिश की है अपने नवलिखित व निर्देशित नाटक “गर्भ“ में. नाटक की शुरुआत
प्रकृति की सुंदर रचनाओं के वर्णन से होती है, मगर जैसे ही नाटक मनुष्यलोक में
पहुँचता है, कुंठाओं, तनावों और दुखों से भर जाता है. मनुष्य हर बार सुख-सुकून
पाने के उपक्रम रचता है और फिर अपने ही रचे जाल में उलझ जाता है, मकड़ी की भांति.
मंजुल ने शब्दों और विचारों का बहुत ही बढ़िया संसार रचा है “गर्भ” के रूप में. नाटक
होकर भी यह हमारे अनुभवों और विभिन्न मनोभावों को सजीव कर देता है. हमारी
आकांक्षाओं और कुंठाओं को हमारे सामने उपस्थित कर देता है. और एक उम्मीद भरा
रास्ता दिखाता है साँस्कृतिक चेतना और साँस्कृतिक क्रांति रूप में.
1 मार्च यानी शुक्रवार को शाम 4:30 बजे मुम्बई के रवीन्द्र नाट्य
मंदिर के मिनी थिएटर में “एक्सपेरिमेंटल थिएटर
फाउन्डेशन” की इस नाट्य प्रस्तुति
को डेढ़ घंटे तक देखना अविस्मरणीय रहेगा. नाटकों की प्रस्तुतियाँ तो बहुत होती हैं,
मगर बहुत कम ही ऐसी होती हैं जो मंच से उतरकर जीवन में समा जाती हैं. “गर्भ” एक ऐसी ही
प्रस्तुति के रूप में हमारे समक्ष प्रकट हुआ. नाटक सिर्फ अभिव्यक्ति का प्रलाप भर
या दर्शकों का मनोरंजन करने का मात्र तमाशा भर नहीं है, ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस’ नाट्य
सिद्धांत के इस विचार को दर्शकों से जोड़ती है यह प्रस्तुति.
मुख्य अभिनेत्री अश्विनी का उत्कृष्ट अभिनय
नाटक को ऊँचाई प्रदान करता है, यह समझना मुश्किल हो जाता है कि अभिनेत्री नाटक के
चरित्र को मंच पर प्रस्तुत कर रही है या अपनी ही मनोदशा, अपने ही अनुभव दर्शकों के
साथ बाँट रही है. अश्विनी को सायली पावसकर और लवेश सुम्भे का अच्छा साथ मिला. संगीत का सुन्दर सहयोग नीला भागवत का था.
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