थियेटर महज कलात्मक अभिव्यक्ति और संतुष्टि पाने का माध्यम नहीं है,बल्कि यह हमें जीवन के अनुभवों से भी गुजरने का अवसर देता है। यह सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, जीवन
को समझने की भी चेतना प्रदान करता है। यह कला को राजनीतिक वादों और धाराओं के चक्रव्यूह से निकालकर जीवन को संवारने का औजार बनाता है। यह महज एक शो नहीं, "थियेटर ऑफ़ रेलेवेंस" है। "थियेटर ऑफ़ रेलेवेंस" नाट्य दर्शन जो जीवन और कला के बीच की अनमोल कड़ी है। ऐसे अद्भुत और
प्रासंगिक रंगविचार के सृजनकर्ता मंजुल भारद्वाज पिछले 31 अक्टूबर से 6 नबंवर तक यानी पूरे एक सप्ताह महाराष्ट्र के कोल्हापुर में इप्टा
द्वारा आयोजित कार्यशाला को संचालित कर रहे थे। "थिएटर ऑफ़ रेलेवंस" नाट्य
कार्यशाला से ३१ अक्टूबर २०१४ को हुई इप्टा कोल्हापुर की स्थापना और "गर्भ " नाटक इप्टा कोल्हापुर की प्रथम प्रस्तुति है .
इप्टा द्वारा आयोजित इस
कार्यशाला में न सिर्फ आर्ट कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज,फार्मास्युटिकल कॉलेज के विद्यार्थी रंग कार्यकर्ता
भी सहभागी थे। मेघा पानसरे, सुनील जाधव , मिलिंद कदम ने आयोजक की सफल भूमिका निभाई !
इन सात दिवसीय कार्यशाला में मंजुल भारद्वाज ने थियेटर की विभिन्न बारीकियों से सहभागियों को अवगत कराया,बल्कि
"गर्भ" नाटक को
उनकी सहभागिता से प्रदर्शित भी किया।
गर्भ मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित व निर्देशित देश-विदेश में सफलतापूर्वक प्रदर्शित बेहद चर्चित नाटक है।
मंजुल भारद्वाज ने गर्भ में पल रहे एक बच्चे के माध्यम से प्रकृति की सुंदरता और आदिम से उत्तर आधुनिक हो चुके मानव जीवन की स्वनिर्मित जटिलताओं को अभिव्यक्त किया है।
मंजुल की कार्यशाला की यह अद्भुत विशेषता है कि नए और पुराने दोनों तरह के सहभागी समान रुप से प्रभावशाली और परिवर्तनकारी अनुभवों से गुजरते हैं।
मंजुल की कार्यशाला की यह अद्भुत विशेषता है कि नए और पुराने दोनों तरह के सहभागी समान रुप से प्रभावशाली और परिवर्तनकारी अनुभवों से गुजरते हैं।
.... धनंजय कुमार
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