रंगकर्म की यह
खोज उस ऊँचाई पर पहुँचने के लिए दृढ़संकल्प नजर आती है, जहाँ सांस्कृतिक धरोहर का रूप होगा रंगकर्म।
जहाँ संवाद संवाद नहीं रह जाएँगे सिम्फनी बन जाएँगे और दर्शक जीने लगेगा
नाट्य मंच, नाट्य अभिनय।
मंजुल का यह ट्रीटमेंट मानो सदी का मुकाम बन गया है। हालाँकि वे हर दृष्टि से यह बताना चाहते हैं
कि ‘थिएटर ऑफ रेलेवेंस’
के अनुसार थिएटर क्या है?’ ...
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